बुझ गए हैं कई घरों के चिराग ए रोशन… और सियासत दावा कर रही है बिजली मुफ्त है

अभितोष सिंह
दिल्ली दहल उठी… हिंसा हुई और फिर ये हिंसा तब्दील हो गए दंगों में… राजधानी दिल्ली के कई इलाके दंगों की चपेट में आ गए… और दूसरे शहरों से उन रिहाइश के लिए फोन आने लगे जो काम की तलाश में दिल्ली में आए थे लेकिन दंगों में फंस गए… दंगों के दिन भी बहुत से लोगों ने काम पर जाने की कोशिश की… बहुत से लोग अपने-अपने दफ्तरों के लिए निकलना भी चाहते थे… लेकिन जहां तहां फंस गए… खैर ये तो उस वक्त के हालात थे जब दंगा भड़का और जहां-तहां भाग रहे लोगों की जान चली गई… एक हेड कांस्टेबल को अपनी जान गंवानी पड़ी… और आईबी के एक अधिकारी को भी जान से हाथ धोना पड़ा… कई दर्जन गई जानों का ज़िम्मेदार आखिर कौन है… शायद आपका भी यही जवाब होगा कि इन ज़िंदगियों का ज़िम्मेदार सिर्फ और सिर्फ ओछी राजनीति ही है… जो ना अपना देखती है और ना पराया देखती है… जो ना छोटा देखती है और ना ही बड़ा… जो ना महिलाओं को देखती है और ना ही पुरुषों को क्योंकि राजनीति तो सिर्फ करने का नाम है… और इस राजनीति को खून से रंग दिया गया… राजधानी दिल्ली में चुनावों के दौरान मुफ्त शब्द को एक खूब भुनाया गया तो सीएए और एनआरसी के बहाने मुस्लिम बहनों को घर से बाहर निकालकर उन्हे सड़क का रास्ता दिखाते हुए रास्ते में ही बैठा दिया है… आपने बिल्कुल ठीक समझा… यहां बात शाहीन बाग की हो रही है… फिर वारिस पठान जैसे सियासतदानों या फिर यूं कहें कि कुछ ऐसे चुने हुए नेता जिनके चलते राजनीति ओछी हो चली है… उनकी धमकियों ने एक चिंगारी को धधका दिया… और आग ऐसी भड़की जिसने राजधानी दिल्ली को अपनी चपेट में ले लिया… अमेरिका जैसे शक्तिशाली राष्ट्र का राष्ट्रपति राजधानी दिल्ली में था… न्यूज चैनल्स की आधी स्क्रीन पर एक तस्वीर में ट्रंप और मोदी नज़र आ रहे थे… दिल्ली मदकती दिखी… तो आधी स्क्रीन में धधकती दिल्ली दिखाई दी… देश का दिल है दिल्ली जहां हुए दर्द ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है… हालात ये हो गए कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ही पार्टी के एक सदस्य जो कि पार्षद हैं… उनपर शक की सुई आकर रुक गई और उनकी संदिग्ध भूमिका की जांच की जा रही है… क्योंकि कई ऐसे विडियो वायरल हुए जिनमें पार्षद महोदय के निर्माणाधीन घर की छत दिखी… उस छत पर वो भी दिखे और उनके साथ कई युवा अपना मुंह ढंके हुए… इस हिंसा के दो दिन बाद जब पूरी मीडिया और स्थानीय लोगों ने इस घर को छान मारा…तब जाकर फोरेंसिक टीम पहुंची सबूतों को इकट्ठा करने… खैर ये रवैया सबसे सामने धीरे-धीरे सामने आ रहा है लेकिन ये सच है कि एक दूसरे पर ज़िम्मेदारी थोपने की बजाय उन घर के हालातों के बारे में सबसे पहले सोचा जाना चाहिए… जिन्होने अपने घरों के चिरागों को बुझते देखा है… नाउम्मीदी इनके दामन में हमेशा-हमेशा के लिए आकर सिमट गई… ऐसे में सियासी बेरूखी इन लोगों को तोड़कर रख देगी क्योंकि अब ये जख्म शायद ही भरें जो फरवरी 2020 में इन परिवार वालों को मिले हैं… राजधानी दिल्ली की आंखों में आंसू हैं और लम्हों में हुई खता की सजा अब सदियों तक मिलती रहेगी.,.,,