मोदी सरकार के दावे और कुपोषण के जाल में फसता देश

अखिलेश अखिल
नीति आयोग की ओर से कराए गए एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि भारत में पूरक पोषण कार्यक्रम के तहत गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महज 46 फीसदी महिलाओं को ही राशन मिल पाता है। बता दें कि इस कार्यक्रम के तहत पंजीकरण कराने वाली महिलाओं की दर 78 फीसदी है। इस सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि आंगनवाड़ी योजना में पंजीकृत 64 फीसदी बच्चों में से सिर्फ 17 फीसदी को ही दिन में एक बार गर्म भोजन मिल पाता है। इससे पहले एक अन्य सर्वेक्षण में कहा गया था भारत में हर तीसरी महिला कुपोषित है जबकि हर दूसरी महिला में खून की कमी है। ऐसी महिलाओं के बच्चों का वजन जन्म के समय काफी कम होता है। यह स्थिति तब है जब देश में हर साल सितंबर के पहले सप्ताह के दौरान राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया जाता है। इस साल तो पूरे सितंबर तक राष्ट्रीय पोषण माह का पालन किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2022 तक कुपोषण खत्म करने की बात कही है। केंद्रीय महिला व बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने भी इसी नीति के तहत वर्ष 2022 तक कुपोषण-मुक्त भारत का लक्ष्य हासिल करने का नारा दिया है। लेकिन भारत में कुपोषण की समस्या इतनी व्यापक और जटिल है कि इससे निपटना आसान नहीं है।
नीति आयोग की ओर से 27 जिलों में कराए गए सर्वेक्षण के मुताबिक 78 फीसदी पंजीकरण दर के बावजूद गर्भवती और स्तनपान कराने वाली केवल 46 फीसदी महिलाओं को पूरक पोषण कार्यक्रम के अंतर्गत टेक होम यानी घर ले जाने के लिए राशन मुहैया कराया गया। इसके साथ ही आंगनवाड़ी में पंजीकृत 64 फीसदी बच्चों में से सिर्फ 17 फीसदी बच्चों को ही दिन में गर्म खाना मिला. इस स्थिति से निपटने के लिए नीति आयोग ने स्वास्थ्य मंत्रालय की देख-रेख में समुदाय आधारित कुपोषण प्रबंधन (सीएमएएम) और विभिन्न राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में आंगनवाड़ी सेवा के खाली पदों को शीघ्र भरने की सिफारिश की है। सीएमएएम व्यवस्था के तहत कुपोषित बच्चों का उनके पोषण और चिकित्सकीय जरूरतों के अनुरूप इलाज किया जाता है। आयोग में सलाहकार आलोक कुमार कहते हैं, अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट के आधार पर हमने कई सिफारिशें की हैं। उन पर अमल के जरिए इन खामियों को दूर किया जा सकता है। इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विसेज (आईसीडीएस) के पूरक पोषण कार्यक्रम के तहत छह महीने से छह साल तक के बच्चों और गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाओं को पूरक पोषण दिया जाता है।
गौरतलब है कि भारत को कुपोषण मुक्त करने के प्रयासों के तहत सरकार ने राष्ट्रीय पोषण मिशन का नाम बदलकर पोषण अभियान कर दिया है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में हर तीसरा बच्चा कुपोषित है। कुपोषण की शुरुआत बच्चे से नहीं बल्कि गर्भवती माता से होती है. इस मामले में में सबसे ज्यादा खराब स्थिति महिलाओं की है। स्वास्थ्य विषेषज्ञों का कहना है कि कुपोषण का एक बड़ा कारण आर्थिक रूप से कमजोर व पिछड़े वर्ग की महिलाओं का प्रसव से पहले तक मजदूरी पर जाते रहना और प्रसव के चंद दिनों बाद ही फिर काम पर लौट जाना है।
उधर ,स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार देश में पांच साल से कम उम्र के 50 फीसदी बच्चे और 30 फीसदी गर्भवती महिलाएं कुपोषण की शिकार हैं। इसमें ज्यादातर ऐसे गरीब परिवार शामिल हैं जो अपने भोजन में पौष्टिक चीजों को शामिल नहीं कर पाते. भारत में 1.08 लाख शिशु एक महीने और 17 लाख बच्चे एक साल की उम्र पूरा करने से पहले मौत के शिकार हो जाते हैं। पांच साल तक के बच्चों के मामले में यह आंकड़ा लगभग 21 लाख है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के आहार विज्ञान विभाग व राष्ट्रीय पोषण संस्थान की ओर से बच्चों पर किए गए अध्ययन से तस्वीर की भयावहता सामने आती है। इसके मुताबिक, 63 फीसदी बच्चों का कद उनकी उम्र के मुकाबले कम है जबकि 34 फीसदी दूसरों के मुकाबले ज्यादा कमजोर हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 51 फीसदी बच्चों का वजन कम है और 73 फीसदी का बाडी मास इंडेक्स (बीएमआई) सामान्य से कम है।
विशेषज्ञों का कहना है कि कुपोषण से निपटने के लिये केन्द्र और राज्यों के बीच सभी योजनाओं में समन्वय बेहद जरूरी है। इसके तहत विशुद्ध पेयजल मुहैया कराना सबसे जरूरी शर्त है। कुपोषण के मामलों में दूषित पेयजल की अहम भूमिका होती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. सुदर्शन घोष कहते हैं, “कुपोषण पर काबू पाने के लिए सरकारी योजनाओं को सख्ती से लागू करना और उनका फायदा लाभार्थियों तक पहुंचाने के लिए एक पारदर्शी तंत्र विकसित करना जरूरी है। इसके साथ ही सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को भी उच्चस्तरीय बनाना जरूरी है।”
यूनिसेफ की प्रोग्रेस फॉर चिल्ड्रेन रिपोर्ट में चेतावनी देते हुए कहा गया है कि अगर नवजात शिशु को आहार देने के उचित तरीके के साथ स्वास्थ्य के प्रति कुछ सामान्य सावधानियां बरती जाएं तो भारत में हर साल पांच वर्ष से कम उम्र के छह लाख से ज्यादा बच्चों की मौत को टाला जा सकता है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि पोषण की कमी के चलते वर्ष 2050 तक देश के 5.30 करोड़ से ज्यादा लोगों प्रोटीन की कमी से जूझना होगा। कुपोषण की समस्या पर काबू पाने के लिए तत्काल ठोस कदम नहीं उठाए गए तो निकट भविष्य में तस्वीर और भयावह हो सकती है।