देश का ऐसा मंदिर जहां शीश नवाने आते हैं हिन्दू, मुस्लिम और सिख !

लालकिला पोस्ट डेस्क
वैसे तो देश में अलग-अलग धर्म के लोगों के लिए अलग-अलग इबादतगाह है। लेकिन आज हम देश के एक ऐसे तीर्थ स्थान की बात करने जा रहे हैं, जहां हिन्दू, मुस्लिम और सिख एक साथ शीश नवाते हैं और पवित्र सरोवर में स्नान कर मोक्ष की कामना करते हैं।
जी हां, ये तीर्थ स्थान है, हरियाणा के यमुनानगर का कपालमोचन तीर्थ स्थल। यहां हर साल विशाल मेला लगता है। कपालमोचन तीर्थ स्थल का अपना ही महत्व है। इसीलिए वेदों में वर्णित भी है कि सारे तीर्थ बार-बार कपालमोचन एक बार। यहां द्वापर, त्रेता कलयुग का इतिहास सिमटा है। शास्त्रों के अनुसार यहां श्रीराम, श्रीकृष्ण, पांडव कौरव भी पितरों की शांति के लिए आए। कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद श्रीकृष्ण अर्जुन ने यहां शस्त्र धोकर पितरों की शांति के लिए पूजा अर्चना की।
कहा जाता है कि कलयुग के आगमन से पहले ब्रह्मा हत्या से मुक्त होने को शिवजी ने यहां यज्ञ किए। किवदंती के अनुसार भगवान शिव को ब्रह्मा जी का एक सिर काटने पर कपाली लग गई थी। जिसे दूर करने के लिए उन्होंने हर प्रयास किया। लेकिन सफलता नहीं मिली। फिर भवानीपुर गांव में गऊ बच्छा की कहानी सुनकर पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने यहां के कपालमोचन सरोवर में स्नान कर उस कपाली से मुक्ति पाई थी। जिस कारण इस पवित्र सरोवर का नाम कपालमोचन पड़ गया है। चांद के आकार का होने पर इस सोमसर के नाम भी जाना जाता है।
इस तीर्थस्थल में सबसे अधिक मान्यता सिख धर्म के श्रद्धालुओं की है। यहां पहली पातशाही गुरु नानक देव दसवीं पातशाही गुरु गोबिंद सिंह के दो गुरुद्वारे हैं। गुरु नानक देव जी ने अपना जन्मदिन यहां ठहर कर मनाया। गुरु गोबिंद सिंह ने दस्तारबंदी की प्रथा यहीं से शुरू की थी। वहीं राजा अकबर के भी यहां आने के साक्ष्य मिलते हैं। बाबा दुधाधारी की मजार भी लोगों की आस्था का केंद्र मानी जाती है।
इस तीर्थ के सरोवर में श्रद्धालु पांच दिन तक ठहर कर स्नान करते हैं। यहां तीन सरोवर हैं। सूरजकुंड, ऋणमोचन कपालमोचन सरोवर। श्रद्धालु शुक्ल पक्ष की एकादशी से स्नान शुरू कर पूर्णिमा को संपूर्ण स्नान करते हैं। यहां साधु संतों की शाही भी निकलती है। बड़ी संख्या में संत महंत इसमें भाग लेते है।