शवों के साथ शारीरिक सम्बन्ध क्यों बनाते हैं अघोरी ?

लालकिला पोस्ट डेस्क
उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु और संत कुंभ स्नान के लिए पहुंचे हैं। इन्हीं साधु-संतों के तमाम संप्रदायों में से एक है ‘अघोरी’। हालांकि अघोरियों को उनकी साधना पद्धति के चलते साधारण समाज स्वीकार नहीं करता है। उनसे जुड़े कुछ ऐसे राज हैं, जिसे जानकर आप भी हैरान हुए बिना नहीं रह पाएंगे।
अघोरी बाबा सुनते ही जहन में एक वीभत्स सा रूप आ जाता है। राख से लिपटे, इंसानी मांस खाने वाले, जादू टोना करने वाले साधुओं के रूप में इन्हें जाना जाता है। अघोरी शब्द का संस्कृत भाषा में मतलब होता है ‘उजाले की ओर’। साथ ही इस शब्द को पवित्रता और सभी बुराइयों से मुक्त भी समझा जाता है। लेकिन अघोरियों को रहन-सहन और तरीके इसके बिलकुल विरुद्ध ही दिखते हैं।
कहा जाता है कि अघोरी साधु इंसान का कच्चा मांस खाते हैं। अक्सर ये अघोरी श्मशान घाट में ही रहते हैं और अधजली लाशों को निकालकर उनका मांस खाते हैं, शरीर के द्रव्य भी प्रयोग करते हैं। इसके पीछे उनका मानना है कि ऐसा करने से उनकी तंत्र करने की शक्ति प्रबल होती है। वहीं जो बातें आम जनमानस को वीभत्स लगती हैं, अघोरियों के लिए वो उनकी साधना का हिस्सा है। अघोरी खुद को पूरी तरह से शिव में लीन करना चाहते हैं। शिव के पांच रूपों में से एक रूप ‘अघोर’ है।
ये बहुत प्रचलित धारणा है कि अघोरी साधु शवों की साधना के साथ ही उनसे शारीरिक सम्बन्ध भी बनाते हैं। ये बात खुद अघोरी भी मानते हैं। इसके पीछे का कारण वो ये बताते हैं कि शिव और शक्ति की उपासना करने का ये तरीका है। उनका कहना है कि उपासना करने का ये सबसे सरल तरीका है, वीभत्स में भी ईश्वर के प्रति समर्पण। वो मानते हैं कि अगर शव के साथ शारीरिक क्रिया के दौरान भी मन ईश्वर भक्ति में लगा है, तो इससे बढ़कर साधना का स्तर क्या होगा।