भगवान शिव आखिर यहां कहलाते हैं नीली छतरी वाले ?
लालकिला पोस्ट डेस्क
भारत को मंदिरों का देश भी कहा जाता है। यहां के हर मंदिर की अपनी एक अलग, रहस्यमयी और चौंकाने वाला इतिहास है। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो न सिर्फ करीब 55 सौ साल पुराना है, बल्कि इस मंदिर का पांडवों के साथ अनोखा रिश्ता रहा है।
जी हां, हम बात कर रहे हैं, दिल्ली के निगम बोध घाट पर स्थित नीली छतरी वाला शिव मंधिर के बारे में। इसका संबंध पांडवों से बताया जाता है। कहते हैं कि महाभारत युद्ध के बाद जब युधिष्ठिर राजा बने तब भारतवर्ष को एक सूत्र में बांधना उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी। समस्या का समाधान निकालने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अश्वमेध यज्ञ करने की सलाह दी। भगवान श्रीकृष्ण की सलाह और सहयोग से युधिष्ठिर ने युमना नदी के तट पर शिवलिंग की स्थापना की और हवन कुंड का निर्माण किया। यहीं पर उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया।
इस यज्ञ के लिए जिस स्थान का चुनाव किया गया वह निगम बोध घाट के पास जमुना बाजार स्थित नीली छतरी मंदिर है। यहां युधिष्ठिर ने देवादिदेव महादेव का शिवलिंग स्थापित किया और हवन कुंड बनवाया। इसी मंदिर में अश्वमेध यज्ञ को पूरा करके युधिष्ठिर चक्रवर्ती सम्राट यानी पूरे भारतवर्ष के राजा हुए जिसकी सीमा वर्तमान पाकिस्तान और अफगानिस्तान तक थी। इस मंदिर के गुंबज को अब जरा आप गौर से देखिए। इसका रंग नीला है। ये नीला रंग गुंबज पर लगे नीले रंग की टाइल्स की वजह है। गुंबज के इसी नीले रंग के कारण ये मंदिर नीली छतरी के नाम से प्रसिद्ध है।
मंदिर की नीली छतरी को लेकर ऐसी भी कहानी है कि पहले इस पर टाइल्ल की जगह नीलम पत्थर जड़ा हुआ था। इस पर जब चांद की दूधिया रोशनी पड़ती थी, तो नीले रंग की आभा छिटकती थी, जिससे इसे नीली छतरी के नाम से प्रसिद्धि मिली हुई थी। वैसे मंदिर को लेकर कैर स्टीफन नामक के एक इतिहासकार का कहना है कि ये मुगल बादशाह अकबर के मनसबदार नौबत खान का मकबरा है, जिसका निर्माण 1565 में उन्होंने अपने जीवनकाल में करवाया था। शिवपुराण के अनुसार इस अभिषेक से भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती है।