देश के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की इन बातों को जानते हैं
लालकिला पोस्ट डेस्क
भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेक्शा का नाम सुनते ही साल 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध जेहन में आ जाता है। वो भारत के 8वें सेनाध्यक्ष थे और 1971 में उन्हीं के नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तान को हराया था। इस युद्ध में करीब 90 हजार सैनिकों को बंदी बनाया, जो एक ऐतिहासिक रेकॉर्ड है। ऐसे में सैम मानेकशॉ से जुड़ी बातों को जानना बेहद जरूरी है।
सैम का शानदार मिलिट्री करियर ब्रिटिश इंडियन आर्मी से शुरू हुआ और 4 दशकों तक चला, जिसके दौरान पांच युद्ध भी हुए। फील्ड मार्शल की रैंक पाने वाले वो भारतीय सेना के पहले अधिकारी थे। उन्होंने जब सेना में जाने का फैसला किया, तो उनको पिता के विरोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने पिता के खिलाफ बगावत कर दी और इंडियन मिलिट्री अकैडमी, देहरादून में दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा दी। वो 1932 में पहले 40 कैडेट्स वाले बैच में शामिल हुए।
सैम हकीकत कहने से कभी नहीं घबराते थे। जब इंदिरा गांधी ने असमय पूर्वी पाकिस्तान पर हमले के लिए कहा, तो उन्होंने जवाब दिया कि इस स्थिति में हार तय है। इससे इंदिरा गांधी को गुस्सा आ गया। उनके गुस्से की परवाह किए बगैर मानेकशॉ ने कहा कि प्रधानमंत्री क्या आप चाहती हैं कि आपके मुंह खोलने से पहले, मैं कोई बहाना बनाकर अपना इस्तीफा सौंप दूं।
इसके लगभग 7 महीने बाद उन्होंने तैयारी पूरी करके बांग्लादेश का युद्ध लड़ा। साल 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच जंग छिड़ चुकी थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी परेशान थीं। इंदिरा गांधी जल्दी-जल्दी तत्कालीन जनरल सैम मानेकशॉ के पास आईं। इंदिरा गांधी ने सैम से पूछा कि क्या आप इस युद्ध के लिए तैयार हैं? तब सैम ने मुस्कुराकर उन्हें जवाब दिया मैं हमेशा तैयार रहता हूं, ‘स्वीटी’।
आपको बता दें कि मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में एक पारसी परिवार में हुआ था। मानेकशॉ के पिता का नाम होर्मूसजी मानेकशॉ और मां का नाम हीराबाई था। मां-बाप ने उनका नाम साइरस रखा था, लेकिन उनकी चाची ने सुना था कि जिन पारसियों का नाम साइरस होता है, उन्हें जेल भेज दिया जाता है। और तभी उन्होंने उनका नाम सैम रख दिया। सैम एकमात्र ऐसे सेनाधिकारी थे, जिन्हें रिटायरमेंट से पहले ही पांच सितारा रैंक तक पदोन्नति दी गई थी। मानेकशॉ के देशप्रेम और देश के प्रति निस्वार्थ सेवा के चलते उन्हें साल 1972 में देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से नवाज़ा गया। इसके अलावा जनवरी, 1973 में उन्हें फील्ड मार्शल का पद दिया गया, और इसी माह वो सेवानिवृत्त हो गए।