कुंभकर्ण

लालकिला पोस्ट डेस्क
कथाओं और दंत कथाओं में भी कुंभकरण के बारे में इसी तरह की बातें जानने को मिलती हैं जहां कुंभकरण के महापराक्रमी होने के कई सबूत मिलते हैं।
भागवत पुराण के मुताबिक कुंभकरण देवताओं का हिस्सा था और स्वयं भगवान विष्णु की पहरेदारी या रक्षा करने का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया था लेकिन चार कुमारों सनक, सनंदन, सनातन और सनत कुमार ने विजया नाम के देवताओं के इस पहरेदार को शाप दिया। पहले तो उसे हमेशा के लिए मनुष्य होने का शाप मिला लेकिन बाद में भगवान विष्णु ने तीन जन्मों तक अपना शत्रु बनकर जन्म लेने के शाप में इसे बदल दिया था।
ये भी कहा जाता है कि पूर्वजन्म में देवताओं का हिस्सा होने की वजह से ही कुंभकरण महान पराक्रमी और न्याय प्रिय था। उसने रावण को कहा था कि स्वंय जगत जननी का हरण करने वाला अपनी विजय के बारे में सोच भी कैसे सकता है।
कुंभकरण को सिर्फ सोने और डील डौल में बहुत बड़े होने की वजह से जाना जाता है जो कि उसकी बहुत सीमित पहचान है। वो वेदों का भी जानकार था। रावण की तरह ही वो ब्राह्मण पुत्र था और ये भी कहा जाता है कि माता कैकसी के गुण उसमें रावण के मुकाबले कम थे यानी वो अपने पिता ऋषि विश्रवा के गुणों को ज्यादा धारण करता था।
कुंभकरण के 6 महीने तक सोने के बारे में भी एक दिलचस्प कथा है। यहां कुंभकरण की जुबान फिसल जाने भर से वरदान शाप में बदल गए थे। कहते हैं ब्रह्मा से वर मांगते हुए कुंभकरण की मति या जबान को मां सरस्वती ने हर लिया और उसने इंद्रासन यानी इंद्र के राज की जगह मुंह से निद्रासन निकाला और निर्देवतां के बजाय निद्रावतां निकला।
कुंभकर्ण ने घोर तपस्या से ब्रह्मा को प्रसन्न कर लिया अत: जब वे उसे वर देने के लिए जाने लगे तो इन्द्र तथा अन्य सब देवताओं ने उनसे वर न देने की प्रार्थना की क्योंकि कुंभकर्ण से सभी लोग परेशान थे। ब्रह्मा बहुत चिंतित हुए। उन्होंने सरस्वती से कुंभकर्ण की जिह्वा पर प्रतिष्ठित होने के लिए कहा। फलस्वरूप ब्रह्मा के यह कहने पर कि कुंभकर्ण वर मांगे- उसने अनेक वर्षों तक सो पाने का वर मांगा। ब्रह्मा ने वर दिया कि वह निरंतर सोता रहेगा। छह मास के बाद केवल एक दिन के लिए जागेगा। भूख से व्याकुल वह उस दिन पृथ्वी पर चक्कर लगाकर लोगों का भक्षण करेगा।
वहीं कुंभकर्ण के विषय में श्रीराम चरित मानस में लिखा है कि वो शराब का शौकीन था और शराब पीकर पड़ा रहता था।
अतिबल कुंभकरन अस भ्राता।जेहि कहुँ नहिं प्रतिभट जग जाता।
करइ पान सोवइ षट मासा। जागत होइ तिहुँ पुर त्रासा।।
रावण का भाई कुंभकर्ण अत्यंत बलवान था, इससे टक्कर लेने वाला कोई योद्धा पूरे जगत में नहीं था। वह मदिरा पीकर छ: माह सोया करता था। जब कुंभकर्ण जागता था तो तीनों लोकों में हाहाकार मच जाता था।
रावण, विभीषण और कुंभकर्ण तीनों भाईयों ने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर जब ब्रह्माजी प्रकट हुए तो कुंभकर्ण को वरदान देने से पहले चिंतित थे। इस संबंध में श्रीरामचरित मानस में लिखा है कि खाने का बहुत शौकिन था और भूखा भी था।
पुनि प्रभु कुंभकरन पहिं गयऊ। तेहि बिलोकि मन बिसमय भयऊ।
इसका अर्थ यह है कि रावण को मनचाहा वरदान देने के बाद ब्रह्माजी कुंभकर्ण के पास गए। उसे देखकर ब्रह्माजी के मन में बड़ा आश्चर्य हुआ।
जौं एहिं खल नित करब अहारू। होइहि सब उजारि संसारू।।
सारद प्रेरि तासु मति फेरी। मागेसि नीद मास षट केरी।।
ब्रह्माजी की चिंता का कारण ये था कि यदि कुंभकर्ण हर रोज भरपेट भोजन करेगा तो जल्दी ही पूरी सृष्टि नष्ट हो जाएगी। इस कारण ब्रह्माजी ने सरस्वती के द्वारा कुंभकर्ण की बुद्धि भ्रमित कर दी थी। कुंभकर्ण ने मतिभ्रम के कारण 6 माह तक सोते रहने का वरदान मांग लिया।
सीता हरण के बाद श्री राम वानर सेना सहित लंका पहुंच गए थे। श्री राम और रावण, दोनों की सेनाओं के बीच घमासान युद्ध होने लगा, उस समय कुंभकर्ण सो रहा था। जब रावण के कई महारथी मारे जा चुके थे, तब कुंभकर्ण को जगाने का आदेश दिया गया। कई प्रकार के उपायों के बाद जब कुंभकर्ण जागा और उसे मालूम हुआ कि रावण ने सीता का हरण किया है तो उसे बहुत दुख हुआ था।
जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान।
कुंभकर्ण दुखी होकर रावण से बोला कि अरे मूर्ख। तूने जगत जननी का हरण किया है और अब तू अपना कल्याण चाहता है?
इसके बाद कुंभकर्ण ने रावण को कई प्रकार से समझाया कि श्रीराम से क्षमायाचना कर लें और सीता को सकुशल लौटा दे। ताकि राक्षस कुल का नाश होने से बच जाए। इतना समझाने के बाद भी रावण नहीं माना।
जब रावण युद्ध टालने की बातें नहीं माना तो कुंभकर्ण बड़े भाई का मान रखते हुए युद्ध के लिए तैयार हो गया। कुंभकर्ण जानता था कि श्रीराम साक्षात भगवान विष्णु के अवतार हैं और उन्हें युद्ध में पराजित कर पाना असंभव है। इसके बाद भी रावण का मान रखते हुए, वह श्रीराम से युद्ध करने गया।