जब मैं दंगों के बीच फस गया —

अखिलेश अखिल
दिल्ली बदल गई। अब दिल्ली पहली वाली नहीं रही। राजनीति बदली तो दिल्ली का मिजाज भी बदला। समाज भी बदला। सोचने का अंदाज भी बदला। केंद्र में मोदी की सरकार बनी तो सोचने और कहने का सलीका भी बदला। कल तक जो लोग साथ थे अब साथ देने को तैयार नहीं। संसद और विधान सभाओं में अब मौकापरस्तों की लाइन खड़ी है। कब कौन किस पर जुबानी हमला कर दे कोई नहीं जानता। कब एक मित्र दूसरे को नीच बता दे कोई जनता नहीं। कई रंगो के झंडे सामने आए। कपड़ो के रंग भी बदले। जुबान भी बदली। एक दूसरे पर हमले के तरीके भी बदले। बच्चो के जुबान खुले। महिलाएं मुखर हुई। दो दो हाथ करने को सामने आई। हिन्दू -मुसलमान -सिख -ईसाई और अभी धर्मवाले गोलबंद होने लगे। दलितों ,मुसलमानो ,आदिवासियों पर कई तरह के प्रहार हुए। प्रहार की जद हिन्दू भी आये लेकिन सबसे बड़ा खेल ये हुआ कि हिन्दुओं के बीच बैमनष्यता ज्यादा बढ़ी। सवर्ण और अवर्ण के बीच फासले बढ़े। बेकरी बढ़ी। रोजगार के लाले पड़े। गरीबी बढ़ी। महंगाई बढ़ी। नोटबंदी से देश की तबाही बढ़ी। लेकिन एक बात की खूब चर्चा रही। राष्ट्रवाद का नशा चढ़ा और राष्ट्रद्रोह शब्द के नए तरीके से प्रचार हुआ। सच यही है कि इस पुरे खेल में देश की भाई चारा तिरोहित हुई। गंगा -जमुनी संस्कृति में दरार पड़ी। सब कुछ होते हुए भी अब हमारे पास कुछ भी नहीं। राजनीति के इस खेल में हम कहा पहुँच गए पता नहीं।
दिल्ली जल रही है। दंगा ना भी कहें फिर भी दिल्ली की वर्तमान राजनीति ने दिल्ली वालों को सांप्रदायिक आग में तो दिया है। केंद्र सरकार ने नया सिटीजन एक्ट क्या बनाया देश उबाल पर आ गया। देश के कोने कोने में विरोध जारी हुआ लेकिन आग लगी दिल्ली में। सोमवार यानि 24 फरवरी को दिल्ली के कई इलाके धधक उठे। दिल्ली का पुर्वोत्तर इलाका जल उठा। गोलिया चली। लाशें गिरी और दर्जनों गंभीर रूप से घायल भी हुए। इन घटनाओं की जिम्मेदारी कौन लेगा और क्यों लेना चाहिए यही तो जटिल सवाल है। पूर्वोत्तर दिल्ली में धारा 144 लागू है। लोग घर में सिमटे हैं। सड़कों पर पुलिस बल तैनात हैं। कब क्या हो जाय कौन जाने।
सोमवार को लक्ष्मी नगर से करावल नगर की तरफ यह संवाददाता स्कूटी से आ रहा था। खजुरी आते आते माजरा बदल चुका था। कई गाड़िया टूटी जली पड़ी थी। किसी गाडी को लुटा गया था। गाड़ी में भरी मोतियों के ढेर सड़कों पर बिखरी पड़ी थी। आगे बढ़ा तो जय श्रीराम के नारे लग रहे थे। खूब पथ्थरबाजी हो रही थी। पिता जी के लिए दवा लिए भीड़ में जैसे ही आगे बढ़ा एक सनसनाती पथ्थर मेरे पांव में आ लगी। स्कूटी का बैलेन्स बिगड़ा ,नीचे गिर पड़ा। फिर उठा। पुलिस सामने खड़ी थी। दूसरे तरफ से हिन्दू युवाओं की टोली हाथ में डंडे पथ्थर लिए हुए आ गई। हमें गाली देते हुए भाग जाने को कहा। मैं बेदम सा राह बदलकर आगे खड़ा हो गया।
एनआरसी और सीएए विरोध का खेल कैसे साम्प्रदायिक खेल में बदला ,किसने बदला ,कौन बदला इसे कौन बताएगा। उधर गुजरात से आगरा और फिर दिल्ली में डोनाल्ड ट्रम्प की महफ़िल सजी रही। सरकार के लोग ट्रम्प के स्वागत में लगे रहे लेकिन दिल्ली धधकती रही। संभव हो कि हमारी सरकार की तरफ से ट्रम्प को इस धधकती दिल्ली की जानकारी नहीं दी गई हो लेकिन ट्रम्प के लोग तो इस खेल की जानकारी उन्हें बता ही रहे होंगे।
सरकार और उनके लोग कह रहे हैं कि जो वे कर रहे हैं वही सही है। तो फिर लोग जो कह रहे हैं वह गलत कैसे हैं। लोकतंत्र में किसी की आवाज को दबाकर कैसे चला जा सकता है। ऐसे में संविधान की याद आती है। लेकिन यहां तो संविधान ही सरकार के निशाने पर है। संविधान के रक्षक कोर्ट मौन है। फिर जनता की आस कहाँ है। कौन बताएगा।