यहां श्मशान घाट में चिताओं के जलने के वक्त क्यों थिरकती हैं तवायफ ?

लालकिला पोस्ट डेस्क
काशी को मोक्ष की धरती मानी जाती है। लेकिन काशी की अजीबो-गरीब परंपरा को सुनकर आप खुद को आश्चर्यचकित होने से रोक नहीं पाएंगे। ऐसी ही एक परंपरा है, श्मशान घाट में चिताओं के जलने के समय तवायफों का थिरकना। आप खुद सोचिए एक तरफ जहां मातम का माहौल हो, वहीं दूसरी तरफ तवायफों का थिरकना कैसा लगता होगा?
दरअसल ये काशी की एक परंपरा रही है। साल में एक बार जहां एक तरफ चिताएं जलती हैं, तो दूसरी तरफ नगरवधुओं की महफिल सजती है। ये महफिल चैत्र नवरात्र की अष्टमी की रात को काशी की मणिकर्णिका घाट पर सजती है। तवायफें इस दिन पूरी रात थिरकती हैं।
उनका मानना है कि ऐसा करने से इन्हें भी मुर्दों की तरह मोक्ष की प्राप्ति होगी और अगले जन्म वेश्या का जीवन जीना नहीं पड़ेगा। इस प्रथा की शुरूआत राजा मान सिंह ने की थी। उस समय इस महफिल में उनके राजदरबार के मशहूर गीत और नृत्यकारों को बुलाया जाता था। बाद में इस महफिल में नृत्य करने के लिए वो राज्य की नगरवधुओं को बुलाने लगे। लेकिन आजकल तो इस महफिल में रंग जमाने के लिए मुम्बई से बारगर्ल तक को बुलाया जाता है। इस महफिल को देखने के लिए विदेशों से आने वाले पर्यटक भी खुद को नहीं रोक पाते।