जब मोसाद ने चुन-चुनकर दहशतगर्दों को चुन-चुन कर मारा था !

लालकिला पोस्ट डेस्क
5 सितंबर 1972 को फिलिस्तीन के आतंकियों ने म्यूनिख के ओलिंपिक गांव पर हमला किया। उनके निशाने पर इजरायल की ओलिंपिक टीम थी। आतंकियों ने इजरायल की ओलिंपिक टीम के 11 सदस्यों की हत्या कर दी। इस घटना के पीछे फिलिस्तीन के 8 आतंकियों का हाथ था। उससे बदला लेने के लिए इजरायल की तत्कालीन प्रधानमंत्री गोल्डा मीर ने एक ऑपरेशन को मंजूरी दी। उस ऑपरेशन का नाम था ऑपरेशन रॉथ ऑफ गॉड।
करीब 20 सालों से ज्यादा समय तक चलने वाले इस ऑपरेशन के दौरान मोसाद की टीम ने चुन-चुनकर आतंकियों को मारा। मोसाद की टीम ने पहला बदला 16 अक्टूबर, 1972 को लिया। इजरायली एजेंटों का पहला शिकार था अब्दुल वाइल जैतर। फिलिस्तीन का रहने वाला जैतर जैसे ही रात का खाना खाकर लौटा, पहले से मौजूद इजरायल के दो एजेंटों ने उसे गोलियों से भून दिया। मोसाद का दूसरा निशाना था डॉ. महमूद हमशरी। अगले कुछ महीनों के अंदर चार अन्य संदिग्ध मारे गए।
रॉथ ऑफ गॉड का सबसे अहम मिशन अप्रैल 1973 में अंजाम दिया गया। दरअसल मोसाद की लिस्ट में शामिल ज्यादातर लोग लेबनान में रहते थे, जहां उनकी सुरक्षा का जबर्दस्त बंदोबस्त था। इन लोगों की हत्या के लिए ऑपरेशन रॉथ ऑफ गॉड के हिस्से के तौर पर एक और ऑपरेशन लॉन्च किया गया। 9 अप्रैल, 1973 की रात इजरायली टीम ने ऑपरेशन को अंजाम दिया। कमांडो को पानी और जमीन के रास्ते लेबनान की राजधानी बेरूत पहुंचाया गया। इस मुहमि पर जाने वाली टीम में एहुद बराक भी शामिल थे, जो बाद में इजरायल के प्रधानमंत्री बने। इजरायल के पैराट्रूपर के दस्ते ने पीएफएलपी के हेडक्वॉटर पर हमला किया। कई को मौत के घाट उतार दिया।
इसी दौरान मोसाद के एजेंट ने गलती से एक निर्दोष की हत्या कर दी। इसके बाद नॉर्वे पुलिस ने मोसाद के 6 एजेंटों को गिरफ्तार कर लिया। उनमें दो महिला एजेंट भी शामिल थीं। हालांकि टीम लीडर माइक हरारी समेत कुछ एजेंट्स बच निकलने में कामयाब हुए थे। नॉर्वे पुलिस की जांच में यूरोप भर में फैसले मोसाद के एजेंटों का पता चला। इसके बाद इजरायल पर अंतरराष्ट्रीय दबाव पड़ा और कुछ समय के लिए ऑपरेशन को टाल दिया।