भारत के इस रेल लाइन पर आज भी है अंग्रेजों का कब्जा

लालकिला पोस्ट डेस्क
वैसे तो देश में रेल की पटरियों का जाल बिछा है। भारतीय रेलवे को दुनिया का सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क कहा जाता है। लेकिन आज हम आपको देश के एक रेल लाइन के बारे में जिसका मालिकाना हक भारत के पास नहीं है। ब्रिटेन की एक निजी कंपनी इसका संचालन करती है। और अंग्रेस आज भी इसके एवज में हमसे लगान वसूलता है।
जी हां, हम बात कर रहे हैं, ‘शकुंतला रेल रूट’ का। अमरावती के इस रेल रूट को साल 1903 में ब्रिटिश कंपनी क्लिक निक्सन ने शुरू किया था। इसका निर्माण कपास को मुंबई पोर्ट तक पहुंचाने के लिए कराया गया था। 1857 में स्थापित इस कंपनी को आज सेंट्रल प्रोविन्स रेलवे कंपनी के नाम से जाना जाता है। 1951 में भारतीय रेल का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया, लेकिन सिर्फ यही रूट भारत सरकार के अधीन नहीं था। इस रेल रूट के बदले भारत सरकार हर साल इस कंपनी को 1 करोड़ 20 लाख की रॉयल्टी देती है।
इस ट्रैक पर आज भी ब्रिटेन की इस कंपनी का कब्जा है। इसके देख-रेख की पूरी जिम्मेदारी भी इसपर ही है। हर साल पैसा देने के बावजूद ये ट्रैक बेहद जर्जर है। रेलवे सूत्रों का कहना है कि, पिछले 60 साल से इसकी मरम्मत भी नहीं हुई है। इसपर चलने वाले जेडीएम सीरीज के डीजल लोको इंजन की अधिकतम गति 20 किलोमीटर प्रति घंटे रखी जाती है। इस सेंट्रल रेलवे के 150 कर्मचारी इस घाटे के मार्ग को संचालित करने में आज भी लगे हैं।
इस रेल ट्रैक पर शकुंतला एक्सप्रेस के नाम से सिर्फ एक पैसेंजर ट्रेन चलती है। अमरावती से मुर्तजापुर के 189 किलोमीटर के इस सफर को यह 6-7 घंटे में पूरा करती है। इस सफर में शकुंतला एक्सप्रेस अचलपुर, यवतमाल समेत 17 छोटे-बड़े स्टेशनों पर रुकती है। 100 साल पुरानी 5 डिब्बों की इस ट्रेन को 70 साल तक स्टीम का इंजन खींचता था। इसे 1921 में ब्रिटेन के मैनचेस्टर में बनाया गया था। लेकिन 15 अप्रैल 1994 को शकुंतला एक्प्रेस के स्टीम इंजन को डीजल इंजन से रिप्लेस कर दिया गया।