नीतीश कुमार एक बार फिर सीएम बनेंगे

लालकिला पोस्ट डेस्क
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। बीते करीब 15 सालों से प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार एक बार फिर सीएम बनेंगे। इस चुनाव में एनडीए को 125 (जेडीयू-43, बीजेपी-74, हम-4, वीआईपी-4) सीटें मिली हैं, तो महागठबंधन को 110 (आरजेडी-75, कांग्रेस-19, लेफ्ट- 16) सीटें मिलीं। चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव के 10 लाख नौकरी के लॉलीपॉप और उनकी रैलियों में उमड़ी भीड़ को आधार मानकर महागठबंधन की जीत की भविष्यवाणी कर दी गई। चुनाव बाद आए तमाम एग्जिट पोल भी इसकी तस्दीक करते नजर आए। लेकिन अब जब नतीजे सामने हैं, तो हर कोई अपने-अपने हिसाब से उसकी व्याख्या करने में जुटा है।
चुनाव नतीजों से साफ है कि महागठबंधन के पक्ष में जो हवा बनाया जा रहा था, उसमें रत्ती भर भी दम नहीं था, क्योंकि अगर दम होता तो असली तस्वीर उलट होती। अगर चुनाव नतीजों पर गौर किया जाए, तो साफ है कि इस चुनाव में सिर्फ दो ही पार्टी लेफ्ट और बीजेपी को सही मायने में फायदा हुआ। आरजेडी को 2015 के चुनाव में 80 सीटें मिली थीं, जो इस बार 75 पर सिमट गईं, कांग्रेस 27 से 19 पर आ गई। जेडीयू 71 से 43 पर आ गई, लेफ्ट की बात करें तो 2015 के चुनाव में सीपीआई को 3 सीटें मिली थी, लेकिन इस बार लेफ्ट (सीपीआई+सीपीएम+सीपीआईएमएल) 16 तक, तो बीजेपी 53 से 74 सीटों पर पहुंच गई। अगर सच में महागठबंधन के पक्ष में माहौल होता, जैसा कि चुनाव के पहले दावा किया जाता रहा, तो तस्वीर कुछ और होती। हां, ये बात सच है कि तेजस्वी ने खूब मेहनत की, इस युवा नेता ने बिहार चुनाव में नैरेटिव सेट करने का काम किया। लेकिन प्रदेश की सत्ता तक पहुंचने के लिए उन्हें और मेहनत करनी होगी और लोगों के दिल में जगह बनानी होगी। तेजस्वी ये काम बतौर विपक्ष के नेता कर सकते हैं।
असल में तेजस्वी को इस चुनाव में अगर किसी ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है, तो देश के कुछ कथित नामी-गिरामी पत्रकार, जो अपने सतही ज्ञान के आगे किसी को कुछ समझते ही नहीं। मुझे हंसी आती है, साथ ही तरस भी आता है, उन पत्रकारों पर जिनको जमीनी हकीकत का अंदाजा नहीं होता, लेकिन दिल्ली में बैठे ये पत्रकार अपने-आप को पता नहीं क्या-क्या समझने लगते हैं। जिनका असल काम लोगों तक सही खबर पहुंचाना है, वो पत्रकारिता की दलाली करने में जुटे हैं। ये कथित चुनावी पंडित सोशल मीडिया पर ऐसी हवा बना रहे थे, मानो बिहार में बदलाव का तूफान आने वाला है। ये माना की बदलाव प्रकृति का नियम है, लेकिन चुनाव में बदलाव जनता करती है और उसे ही करना चाहिए, न कि कुछ पत्तलकार टाइप पत्रकार को, जिन्हें न तो ठीक-ठीक लिखने आता है और न ही मात्राओं का ज्ञान है। सीधे शब्दों में कहें तो ऐसे तमाम पत्रकार चुनाव का विश्लेषण नहीं, बल्कि महागठबंधन के पक्ष में हवा बना रहे थे। इनके विश्लेषणों ने आरजेडी के उन उद्दंड कार्यकर्ताओं में जान फूंक दी, जो निष्प्राण हो चुके थे। उन्हें लगने लगा कि बस अब तो अपना राज आने वाला है और शुरू हो गए। इनके हुड़दंग और बदतमीजी ने लोगों को लालू राज की यादें ताजा कर दीं। ये सब हुआ पहले चरण के मतदान के बाद। इसकी भनक शायद तेजस्वी को लग चुकी थी, शायद यही वजह है कि उन्होंने नतीजे वाले दिन किसी तरह की हुल्लड़बाजी पर रोक लगा दी, लेकिन तब तक शायद बहुत देर हो चुकी थी।
अब जब चुनाव नतीजे आ गए हैं, तो तमाम पत्रकारों को सांप सूंघ गया है। सभी दबकी मारकर बैठे हैं। अगर यही काम किसी पत्रकार ने बीजेपी के पक्ष में किया होता, तो सभी भक्त कहकर मैदान में उतर आते। लेकिन बतौर पत्रकार वो अगर किसी पार्टी विशेष के समर्थन में करते हैं, तो वो विश्लेषक हैं, विद्धान हैं। लेकिन मेरी नजर में वो एक पत्तलकार से ज्यादा कुछ नहीं। अरे भाई, आप सही तस्वीर सामने रखो और फैसला जनता पर छोड़ दो। असल में ये लोग बिहार के वोटर को बुड़बक समझ रहे थे, लेकिन ऐसा कर वो खुद बुड़बक बन गए। आज का वोटर इतना चतुर और समझदार जरूर है कि वो अपने अच्छे और बुरे के बारे में सोच सकता है। वो आपके कहे मुताबिक नहीं चलेगा। उसे जिस दिन तेजस्वी अच्छा लगेगा, उस दिन बिना किसी के कहे बिहार की कमान सौंप देगा।