और बूढ़े सरदारों ने कांग्रेस को जमींदोज कर दिया –

अखिलेश अखिल
ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस को लात मारकर निकल गए। 18 साल से कोंग्रेसी रहे सिंधिया एक झटके में बीजेपी के नजदीक चले गए। क्यों गए इस सवाल पर कई तरह के जबाव सामने आ रहे हैं लेकिन एक सच यह है कि जब राजनीति जैसे व्यापार में किसी की मनसा ही पूरी ना हो तो फिर उस गिरोह में रहने का क्या मतलब ? जिस गिरोह में रहकर मनसा पूरी हो उसी के साथ रहा जाय। आजादी के बाद के राजनीतिक दलबदल इतिहास को टटोले तो यही समझ में आता है कि सिर्फ अपने लाभ हानि के लिए नेता पाला बदलते हैं। जनता मूकदर्शक होकर सब देखती है ,कुछ करती नहीं। सिंधिया का यह खेल इतिहास का मात्र एक उदहारण भर है।
एक बात तो साफ़ है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनते ही कांग्रेस आतंरिक कलह से जूझने लगी थी। कमलनाथ और सिंधिया के बीच अनबन शुरू हो गई थी। यह अनबन कोई नीति को लेकर नहीं ,सत्ता की बागडोर को लेकर थी। कोंग्रेसियों ने बूढ़े हो चुके कमलनाथ पर दाव लगाया था। परिणाम यह हुआ कि सिंधिया रुक्सत हो गए। आगे और भी कुछ हो सकता है। राजस्थान की भी यही पटकथा है। सचिन पायलट ने राजस्थान चुनाव में बड़ीभूमिका निभाई थी। लेकिन सत्ता मिली अशोक गहलोत को। सचिन भी दुखी हैं। आगे क्या होगा कौन जाने ! गहलोत को बुढ़ापे में भी सत्ता से चिपके रहा जरुरी है। फिर युवा नेताओं के के लिए क्या भविष्य है ? महाराष्ट्र में मिलिंद देवड़ा भी बिलख रहे हैं। वहाँ भी कुछ हो सकता है। देश के कईइलाक़ों में कांग्रेस के भीतर बूढ़े और युवा नेताओं के बीच द्वन्द जारी है और इस संघर्ष में कांग्रेस जमींदोज होती जा रहीहै।
कांग्रेस के शीर्ष नेता अब भी समझ नहीं पा रहे। सोनिया गाँधी मौन है। क्यों मौन है किसी को पता नहीं। कहा जा रहा है कि युवाओं के हाथ में कांग्रेस की राजनीति जाने से बूढ़े कोंग्रेसी नाराज हो जाएंगे। कांग्रेस छोड़ देंगे। ऐसा हो भी रहा है। लेकिन बूढ़े रहकर भी क्या करेंगे ? जब वे चुनाव न लड़ सकते हैं और नाही जीत हासिल कर सकते हैं तब उनकीभूमिका क्या हो इसका फैसला कौन करे। बीजेपी के सामने अभी कांग्रेस कही खड़ी नहीं है। बीजेपी समय के साथ पुरे देश में युवाओं के हाथ में सत्ता सौप रही है लेकिन कांग्रेस को युवाओं से परहेज है।
सिंधिया का कांग्रेस छोड़ना कोई मामूली बात नहीं। ज्योतिरादित्य के पिता जी भी कोंग्रेसी थे। कांग्रेस में उनकीभूमिका बड़ी थी। ज्योतिरादित्य भी कोई कमतर नहीं रहे। राहुलगांधी से लेकर सोनिया गाँधी तक उनकी पहुँच थी और पार्टी के भीतर भी उनका सम्मान था। लेकिन जब उनकी नाराजगी सामने आई और वे सोनिया गाँधी से अपनी बात रखने को तैयार हुए तो सोनिया गाँधी ने उन्हें मिलने का समय तक नहीं दिया। यह कोई मामूली बात नहीं है। कांग्रेस का कहना है कि सिंधिया ने पार्टी विरोधी कामकिया। ऐसा हो भी सकता है। लेकिन सिंधिया की बातों को कम से कम सोनिया गाँधी को सुनना तो चाहिए था। जो नहीं हो पाया।
सिंधिया आगे क्या करेंगे अभी साफ़ नहीं है। संभव है कि वे बीजेपी ज्वाइन करें। राज्य सभा जाए। मोदी मंत्रिमंडल में शामिल हो जाए। यह भी संभव है कि सिंधिया कोई पार्टी बनाये और अपनी अलग राजनीति करें। लेकिन सिंधिया पर आज जो भी आरोप लगे इतना तो साफ़ है कि बूढी पार्टी के बूढ़े नेताओं ने कांग्रेस को जमींदोज किया है। अभी भी कांग्रेस के शीर्ष नेता इस बात को नहीं समझ पाएंगे तो कांग्रेस का खात्मा निश्चित है। जबतक पार्टी की कमान युवाओं के हाथ में नहीं होगी और पार्टी की पुरानी राजनीति नहीं बदलेगी तब तक इस पार्टी काभविश्य संदेह के घेरे में ही रहेगा।