बंदी विधायकों पर ठहाका लगाता लोभतंत्र

अखिलेश अखिल
बड़े ही जतन से मध्यप्रदेश में कांग्रेस को सत्ता मिली थी। कांग्रेस की तिकोनी राजनीति में कमलनाथ को सत्ता की कमान मिली। उधर मुख्यमंत्री की चाहत रखने वाले सिंधिया मायूस हुए। पार्टी में रहकर ही कमलनाथ सरकार के विरोध में सड़कों पर उतरे और फिर होली के दिन ही कांग्रेस को धत्ता बताकर बीजेपी में चले गए। सिंधिया ने कांग्रेस क्यों छोड़ी ,राहुल ने सिंधिया को क्यों नहीं रोका और फिर क्या कांग्रेस और भी दुर्गति की शिकार होगी जैसे सवालों को लेकर मंथन जारी है। रहेगी भी। वर्तमान सच यही है कि अब सिंधिया का पूरा कुनबा बीजेपी में जा चुका है। इस पर हमचर्चा भी करेंगे लेकिन सबसे पहले मध्यप्रदेश में चलरहे खेलपर एक नजर। राजनीति का चुकि कोईचरित्र नहीं होता इसलिए राजनीति करने वालों के कोई ईमान भी नहीं होते। पैसा और सत्ता इंसान को चरीत्रहीन बनता है और डरपोक केसाथ साथ थेथर भी। पूरी राजनीति थेथरई और निर्लज्जता पर टिकी होती हैऔर जनता सिर्फ मुर्ख बने सब देखने को अभिशप्त। लोकतंत्र का यह नजारा नकोई नया है और नाही कोई अचंभित करने वाला।
हद देखिये। सरकार चाहे अब जिसकीभी बने मध्यप्रदेश के दर्जनों विधायक बंदी बने हुए है। लोकतंत्र का ऐसा उपहास शायद ही कभी देखा गया हो। लेकिन इस खेल में नौटंकीभी है ,हास्य भी है ,रुदाली भी है और मजाक भी। खासकर लोकतंत्र और राजनीति का मजाक .भला यह कैसे हो सकता है कि कोई भी पार्टी किसी नेता को जबरन बंदी बना ले और उसेकहि एकांत में कैद कर ले। असंभव है। और इस लोकतंत्र में ऐसा बार बार देखने को मिलता है। यह सब इसलिए संभव है कि राजनीति एक व्यापार है और नेता जैसे विधायक ,सांसद लोभी और मक्कार इसलिए कहानी बड़ा ही दिलचस्प है और रोचक भी। ताजा खेल यह है कि मध्य प्रदेश में चल रही सियासी उठापटक के बीच अब कांग्रेस भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। मध्य प्रदेश कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की है। याचिका में उसने भाजपा पर अपने 16 विधायकों को कब्ज़े में रखने का आरोप लगाया है और कहा है कि इन विधायकों की अनुपस्थिति में बहुमत परीक्षण नहीं हो सकता। कांग्रेस का यह भी कहना है कि 16 विधायकों को बंधक रखना गैरकानूनी, असंवैधानिक है और संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 और कानून के शासन के खिलाफ है। कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि वह केंद्र सरकार और कर्नाटक सरकार को आदेश दे कि वो कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों को 16 विधायकों से मिलने और बात करने की इजाजत दे। कांग्रेस ने अदालत से कहा कि मध्य प्रदेश विधान सभा के चल रहे बजट सत्र में भाग लेने के लिए विधायकों को सक्षम किया जाए और अनुमति दी जाए। सुप्रीम कोर्ट आदेश जारी करे कि विश्वास मत तभी हो सकता है जब विधानसभा के सभी निर्वाचित विधायक सदन में उपस्थित हों।
कांग्रेस ने फ्लोर टेस्ट के लिए राज्यपाल के उस निर्देश पर भी सवाल उठाया है, जिसमें उन्होंने कहा गया है कि कमलनाथ सरकार पहले ही सदन में बहुमत खो चुकी है। पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि राज्यपाल के निर्देश को अवैध, असंवैधानिक घोषित किया जाए। कांग्रेस ने यह दलील भी दी है कि यदि कांग्रेस के 22 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है तो उनकी सीटें खाली हो गई हैं। ऐसे में विश्वास मत तभी हो सकता है जब उक्त 22 निर्वाचन क्षेत्रों के मतदाताओं का प्रतिनिधित्व हो और ये कानून के अनुसार रिक्त सीटों के लिए उप-चुनाव आयोजित करके हो सकता है।
इससे पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर से एक याचिका दाखिल की गयी थी। इसमें कहा गया था कि राज्यपाल के आदेश के बाद भी 16 मार्च को फ्लोर टेस्ट नहीं कराया गया शिवराज सिंह चौहान की ओर से सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई कि फ्लोर टेस्ट जल्दी कराया जाए। मंगलवार को कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्यमंत्री कमलनाथ और विधानसभा सचिव से जवाब मांगा. शीर्ष अदालत अब बुधवार को इस मामले की सुनवाई करेगी। कमलनाथ सरकार काक्या होगा कोई नहीं जानता। खेल दोनों तरफ से जारी है और जनता मुर्ख बने सब देख रही है और लोकतंत्र लोभतंत्र बनकर ठहाका लगा रहा है।