Horlicks कंपनी खड़ी करने के पीछे कौन दो भाई थे ? Horlicks के सफर की दिलचस्प कहानी जाने

लालकिला पोस्ट डेस्क
कई सालों से भारत में एनर्जी सप्लिमेंट की तरह इस्तेमाल हो रहे हॉर्लिक्स को देश की सबसे बड़ी कंज्यूमर कंपनी हिंदुस्तान यूनीलीवर ने खरीद लिया है। इस मर्जर के लिए एचयूएल को करीब 31 हजार 7 सौ करोड़ रुपये खर्च करने पड़े हैं। वैसे भी ये पहली बार नहीं है, जब हॉर्लिक्स का सौदा हो रहा है। इसे बनाने वाले दो ब्रिटिश भाइयों ने 1969 में इसे ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन ग्रुप को बेचा था। तब से ये जीएसके के ही पास है। तो आइए जानते हैं हॉर्लिक्स के ब्रांड बनने की दिलचस्प कहानी के बारे में।
दरअसल हॉर्लिक्स को दो ब्रिटिश भाइयों- विलियम हॉर्लिक और उनके भाई जेम्स ने अमेरिका में र्इजाद किया था। जेम्स एक केमिस्ट थे, जो अमेरिका में ड्राई बेबी फूड बनाने वाली कंपनी के लिए काम करते थे। उनके छोटे भाई विलियम 1869 में अमेरिका आए थे। जेम्स ने भी अपने भाई के साथ नौकरी करनी शुरू कर दी। लेकिन नौकरी के कुछ सालों बाद दोनों भाइयों ने 1873 में मॉल्टेड मिल्क ड्रिंक बनाने वाली कंपनी J&W हॉर्लिक्स शुरू की। उन्होंने अपने प्रोडक्ट को डायस्टॉइड नाम दिया।
5 जून, 1883 को दोनों भाइयों ने प्रोडक्ट के लिक्विड में मिक्स हो जाने की योग्यता के लिए यूएस पेटेंट नंबर 278,967 हासिल कर लिया और ये पेटेंट पाने वाला पहला मॉल्टेड मिल्क प्रोडक्ट बन गया। इन भाइयों ने 1908 में 28,000 पाउंड खर्च कर बर्कशायर के स्लॉ में अपनी पहली यूके फैक्ट्री शुरू की। फर्स्ट वर्ल्ड वॉर और सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान इसकी लोकप्रियता खूब बढ़ी। हॉर्लिक्स की बढ़ती पॉपुलैरिटी के चलते इसे 1969 में बीशम ग्रुप ने खरीद लिया जो आज ग्लैक्सोस्मिथलाइन यानी जीएसके ग्रुप है।
वैसे तो भारत में हॉर्लिक्स की एंट्री कब हुई, इसे लेकर कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं। लेकिन रिपोर्ट्स की मानें तो पहले विश्वयुद्ध से लौटे ब्रिटिश आर्मी के भारतीय सैनिक इसे भारत लेकर आए थे। 1940 और 1950 के दशक में पंजाब, बंगाल और मद्रास की रियासतों और देश के अन्य संपन्न परिवारों ने इसे सबसे पहले फैमिली ड्रिंक के रूप में अपनाया।