7वीं सदी में बने इस शिव मंदिर के बारे में जानकर हैरान रह जाएंगे ! आखिर इस मंदिर को क्यों कहा जाता है वास्तुकला का अद्भुत नमूना ?

लालकिला पोस्ट डेस्क
वैसे तो पूरी दुनिया में भगवान शिव के जगह-जगह पर मंदिर बने हुए हैं, लेकिन कुछ मंदिर इतने खास हैं कि विज्ञान भी उनकी टक्कर नहीं लेता है। आज हम आपको ऐसे ही एक शिव मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। सातवीं सदी में बना इस शिव मंदिर को लेकर पुरातत्वविद इस बात पर आश्चर्यचकित हैं कि उस जमाने में इस तरह का आर्किटेक्ट बनाया कैसे गया, जबकि उस समय ऐसी तकनीक आई ही नहीं थी।
महाराष्ट्र के औरंगाबाद की 34 एलौरा की गुफाओं में से सबसे अदभुत है कैलाश मंदिर। किसी मंदिर या भवन को बनाते समय पत्थरों के टुकड़ों को एक के ऊपर एक जमाते हुए बनाया जाता है। लेकिन कैलाश मंदिर बनाने में एकदम अनोखा ही तरीका अपनाया गया है। इसकी खासियत ये है कि इसे ऊपर से नीचे की ओर बनाया गया, जबकि आजकल इमारतों का निर्माण नीचे से ऊपर की ओर किया जाता है।
पत्थर काट-काट कर खोखला करके मंदिर, खम्बे, गेट, नक्काशी आदि बनाई गयी। क्या अद्भुत डिजाइन और प्लानिंग की गयी होगी। इसके अतिरिक्त बारिश के पानी को संचित करने का सिस्टम, पानी बाहर करने के लिए नालियां, मंदिर टावर और पुल, महीन डिजाइन से बने खूबसूरत छज्जे, बारीकी से बनी सीढ़ियां, गुप्त अंडरग्राउंड रास्ते आदि सबकुछ पत्थर को काटकर बनाना सामान्य बात नहीं है।
प्राचीन काल में इसे बनाने में 18 साल लगे थे। माना जाता है कि कैलाश मंदिर राष्ट्रकुल राजा कृष्ण प्रथम ने 756-773ई. के दौरान बनवाया था। कहते हैं कि इसे हिमालय के कैलाश का रूप देने का भरपूर प्रयास किया गया है, इसीलिए इसे कैलाश मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर को करीब 40 हजार टन वजनी चट्टान को काटकर 90 फुट ऊंचा मंदिर बनाया गया। इस मंदिर में सामने नंदी विराजमान है और उसके दोनों ओर विशालकाय हाथी और स्तंभ खड़े हैं। दुनियाभर के वैज्ञानिक इस मंदिर के रहस्य को सुलझा नहीं पाए हैं।