जब न्याय के भगवान् संसद पहुंचे , लोगों का गुस्सा फुट पड़ा

लालकिला पोस्ट डेस्क
न्याय के भगवान् कहे जाने वाले पूर्व सीजेआई गोगई संसद क्या पहुंचे लोगों की आलोचना के शिकार हो गए। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए नामित करने पर सबसे पहले उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों और विपक्षी दल के नेताओं ने आलोचना की है। पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसफ सहित कई पूर्व न्यायाधीशों ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के राज्यसभा में मनोनयन पर कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद पद लेना न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमतर करता है। बता दें कि जस्टिस कुरियन जोसफ ,रंजन गोगोई और दो अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों जे. चेलमेश्वर और मदन बी. लोकुर (अब सभी सेवानिवृत्त) के साथ 12 जनवरी 2018 को संवाददाता सम्मेलन करके तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा के तहत उच्चतम न्यायालय की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए थे। जोसफ ने कहा कि गोगोई ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता के सिद्धांतों से समझौता किया है। उन्होंने हैरानी जताई और कहा कि गोगोई द्वारा इस मनोनयन को स्वीकार किए जाने ने न्यायापालिका में आम आदमी के विश्वास को हिला कर रख दिया है।
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका भारत के संविधान के मूल आधार में से एक है। जोसफ ने 2018 में चारों न्यायाधीशों द्वारा किए गए संवाददाता सम्मेलन के संदर्भ में कहा, ‘मैं हैरान हूं कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए कभी ऐसा दृढ़ साहस दिखाने वाले जस्टिस रंजन गोगोई ने कैसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के पवित्र सिद्धांत से समझौता किया है।
उधर ,दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एपी शाह और उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आरएस सोढ़ी ने भी सरकार द्वारा गोगोई के नामांकन पर तीखी प्रतिक्रिया जताई। जस्टिस सोढ़ी ने कहा कि न्यायाधीश को कभी भी सेवानिवृत्त नहीं होना चाहिए या सेवानिवृत्ति के बाद कभी भी पद नहीं लेना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘मेरा हमेशा विचार रहा है कि न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद कभी भी नौकरी स्वीकार नहीं करनी चाहिए। न्यायाधीशों को इतना मजबूत होना चाहिए कि अपनी स्वतंत्रता को बचाए रखें ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता कमतर नहीं हो।
वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने कहा, ‘यह पूरी तरह से घृणित है। यह स्पष्ट तौर पर उनके (रंजन गोगोई) किए के एवज में सरकार की ओर उन्हें दिया गया इनाम है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता पूरी तरह से नष्ट कर दी गई है।
गौरतलब है कि गोगोई के मनोनयन पर राजनीतिक वर्गों एवं अन्य क्षेत्रों में बहस चल रही है जो 13 महीने तक भारत का प्रधान न्यायाधीश रहने के बाद पिछले वर्ष नवंबर में सेवानिवृत्त हुए थे। गोगोई उन पीठों के प्रमुख रहे जिसने संवेदनशील अयोध्या भूमि विवाद सहित कई महत्वपूर्ण फैसले दिए। गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने अयोध्या भूमि विवाद मामले समेत कई संवेदनशील मामलों की सुनवाई की थी। पूर्व सीजेआई गोगोई ने रफाल विमान सौदा, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी), सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को हटाए जाने, और सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मामले की सुनवाई करने वाली पीठ की भी अध्यक्षता की थी। उधर ,कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के कई नेता पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई द्वारा दिए गए फैसलों से मोदी सरकार को फायदा पहुंचने का आरोप लगा रहे हैं।
राज्यसभा के लिए मनोनयन की हो रही आलोचना पर गोगोई ने एक स्थानीय समाचार चैनल को बताया, ‘मैंने राज्यसभा के लिए मनोनयन का प्रस्ताव इस दृढ़विश्वास की वजह से स्वीकार किया कि न्यायपालिका और विधायिका को किसी बिंदु पर राष्ट्र निर्माण के लिये साथ मिलकर काम करना चाहिए।
पूर्व सीजेआई ने कहा, ‘भगवान संसद में मुझे स्वतंत्र आवाज की शक्ति दे. मेरे पास कहने को काफी कुछ है, लेकिन मुझे संसद में शपथ लेने दीजिए और तब मैं बोलूंगा। विपक्षी दलों ने इसे सरकार का निर्लज्ज कृत्य क़रार दिया। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि सरकार के इस निर्लज्ज कृत्य ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को हड़प लिया है।
कांग्रेस ने केंद्र पर संविधान के मौलिक ढांचे पर गंभीर हमला करने का आरोप लगाते हुए कहा कि यह कार्रवाई न्यायपालिका की स्वतंत्रता को हड़प लेती है। राजस्थान के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने कहा कि इससे न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास कमजोर होगा और उनके द्वारा दिए गए फैसलों की निष्पक्षता पर संदेह पैदा करेगा।
माकपा ने इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करने का शर्मनाक प्रयास करार दिया। पार्टी ने एक बयान में कहा, ‘मोदी सरकार पूर्व प्रधान न्यायाधीश को राज्यसभा के लिये मनोनीत करके शर्मनाक तरीके से न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर कर रही है और राज्य के दो अंगों के बीच शक्तियों के विभाजन को तहस-नहस कर रही है, जोकि हमारी संवैधानिक व्यवस्था में निहित पवित्र सिद्धांत है।
एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने पूछा कि क्या गोगोई के मनोनयन में परस्पर लेन-देन है? उन्होंने ट्वीट किया, ‘कई लोग सवाल उठा रहे हैं, न्यायाधीशों की स्वतंत्रता पर लोगों को विश्वास कैसे रहेगा?’ उन्होंने कहा, ‘2012 में स्वर्गीय अरुण जेटली ने राज्यसभा में कहा था कि रिटायरमेंट के पहले न्यायाधीशों के जो फैसले होते हैं और उसके बाद उनको नियुक्ति मिलती है, वो फौरन नहीं मिलना चाहिए। ओवैसी ने कहा, ‘रंजन गोगोई के फैसलों से मौजूदा मोदी सरकार को राजनीतिक फायदा हुआ है। चाहे वो सीबीआई का केस हो, अयोध्या-बाबरी मस्जिद का फैसला हो या रफाल का मामला हो. और गोगोई ने खुद कहा था कि रिटायरमेंट के बाद नियुक्ति नहीं होनी चाहिए।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ट्वीट किया, ‘जस्टिस एचआर खन्ना अपनी ईमानदारी, सरकार के सामने खड़े होने और कानून का शासन बरकरार रखने के लिए याद किए जाते हैं। जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा जाने की खातिर सरकार के साथ खड़े होने और सरकार व खुद की ईमानदारी के साथ समझौता करने के लिए याद किए जाएंगे।